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‘स्टोलन’ में अभिषेक बनर्जी का बदला हुआ अंदाज़

Abhishek Banerjee’s changed style in ‘Stolen’

‘स्त्री’ और ‘बाला’ जैसी हल्की-फुल्की फिल्मों में अपने हास्य अभिनय के लिए पहचाने जाने वाले अभिषेक बनर्जी इस बार गंभीर और इमोशनल किरदार में नज़र आ रहे हैं। ‘स्टोलन’ में उनका किरदार उस व्यक्ति का है जो एक साधारण स्थिति में खुद को एक असाधारण नैतिक संकट में पाता है। फिल्म के टीज़र में उनके चेहरे के भाव, आंखों में बेचैनी और सवालों से भरी नजरें यह स्पष्ट करती हैं कि इस बार वे एक गंभीर सामाजिक मुद्दे को परदे पर जीवंत कर रहे हैं।

टीज़र में ऐसा प्रतीत होता है जैसे अभिषेक का किरदार खुद भी एक आंतरिक द्वंद्व से जूझ रहा है — क्या वो उस महिला की मदद करे, या उस वर्गीय दूरी को स्वीकार करे जो समाज ने तय की है? यह मानसिक द्वंद्व और उससे उपजा संघर्ष ही फिल्म को और भी दमदार बनाता है।


निर्देशक करण तेजपाल की परिपक्व सोच

करण तेजपाल के लिए ‘स्टोलन’ उनके निर्देशन की पहली फिल्म है, लेकिन जिस तरीके से उन्होंने एक संवेदनशील और जटिल विषय को कहानी के केंद्र में रखा है, वह दर्शाता है कि वे सिनेमा की ताकत को सामाजिक जागरूकता के लिए इस्तेमाल करना जानते हैं। उन्होंने न केवल एक क्राइम थ्रिलर प्रस्तुत किया है, बल्कि उसमें मानवीय संवेदनाएं, वर्ग भेद, और सामाजिक विषमताओं जैसे पहलुओं को भी बारीकी से पिरोया है।

करण तेजपाल का मानना है कि “हर कहानी एक जिम्मेदारी के साथ आती है। ‘स्टोलन’ एक मनोरंजक थ्रिलर है, लेकिन यह हमें यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि जब कोई अन्याय हमारे सामने हो रहा हो तो हम चुप रहते हैं या आवाज़ उठाते हैं।”


तकनीकी पक्ष की मजबूती

‘स्टोलन’ का टीज़र न सिर्फ कहानी में दिलचस्पी जगाता है, बल्कि उसकी तकनीकी गुणवत्ता भी काबिले-तारीफ है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी तनावपूर्ण माहौल को बखूबी दर्शाती है — हर शॉट में गहराई, छाया और रोशनी का खूबसूरत तालमेल दिखाई देता है। बैकग्राउंड स्कोर दर्शकों को सस्पेंस और इमोशनल दृश्यों में डुबो देता है, जिससे फिल्म की गंभीरता और भी प्रबल होती है।

एडिटिंग भी बेहद चुस्त है — 52 सेकंड के इस टीज़र में कोई भी दृश्य अनावश्यक या खिंचा हुआ महसूस नहीं होता। बल्कि, हर सेकंड दर्शक के मन में और सवाल खड़े करता है।


फिल्म का सामाजिक महत्व

‘स्टोलन’ एक मनोरंजन प्रधान फिल्म होने के साथ-साथ सामाजिक सवाल भी उठाती है — क्या हम अपने विशेषाधिकार को पहचानते हैं? क्या हम उस समाज का हिस्सा हैं जो कमजोर की आवाज़ बनने को तैयार है? यह फिल्म हमें ‘आरामदायक दूरी’ से निकलकर अन्याय और असमानता के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देती है।

फिल्म की कहानी एक बच्चे के अपहरण पर केंद्रित जरूर है, लेकिन उसकी परतें और भी गहरी हैं — यह वर्ग संघर्ष, पुलिस तंत्र की निष्क्रियता, और इंसानी करुणा की जीत की कहानी है।


फेस्टिवल्स में मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान

‘स्टोलन’ सिर्फ एक भारतीय कहानी नहीं है, बल्कि एक वैश्विक अनुभव है। अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में इस फिल्म की सराहना यह साबित करती है कि इसकी विषयवस्तु सीमाओं से परे है। चाहे वो बीजिंग फिल्म फेस्टिवल में जीते गए पुरस्कार हों या वेनिस में मिला स्टैंडिंग ओवेशन, ‘स्टोलन’ ने यह दिखा दिया है कि भारतीय सिनेमा अब सिर्फ गीत-संगीत या बड़े स्टार्स तक सीमित नहीं, बल्कि विचारों और संवेदनाओं का सशक्त माध्यम बन चुका है।


क्या उम्मीद करें दर्शक?

‘स्टोलन’ उन फिल्मों में से है जो केवल मनोरंजन नहीं देतीं, बल्कि मन और आत्मा दोनों को झकझोर देती हैं। इस फिल्म से दर्शकों को एक गंभीर कहानी, संवेदनशील अभिनय, सशक्त निर्देशन और तकनीकी उत्कृष्टता की उम्मीद करनी चाहिए।

अभिषेक बनर्जी का गंभीर अभिनय, करण तेजपाल का निर्देशन कौशल और गौरव ढींगरा का प्रोडक्शन अनुभव इसे एक प्रभावशाली फिल्म बनाते हैं।


अंत में

4 जून को ‘स्टोलन’ प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हो रही है। यह फिल्म एक संदेश है — सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक चिंतन का भी माध्यम है।

Ashish
Ashishhttps://www.aajkinews27.com
Ashish is a passionate news writer with 3 years of experience covering politics, business, entertainment, sports, and the latest news. He delivers accurate and engaging content, keeping readers informed about current events. With a keen eye for detail, Ashish ensures every story is well-researched and impactful. Stay updated with his insightful news coverage.
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