Bihar’s big scandal: When 389 prisoners escaped from jail in one night, Naxalites looted bombs and guns : बिहार के जहानाबाद जिले की वह रात भारतीय इतिहास के सबसे खौफनाक पलों में से एक मानी जाती है। तारीख थी 13 नवंबर 2005। उस रात बिहार के चुनावी माहौल में चारों ओर राजनीतिक गतिविधियाँ तेज थीं, लेकिन कोई सोच भी नहीं सकता था कि नक्सलियों की तरफ से इतना बड़ा हमला अंजाम दिया जाएगा। यह हमला सिर्फ जेल पर नहीं था, बल्कि पूरे सिस्टम की नींव को चुनौती देने वाला था।
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हमला कैसे हुआ?
रात लगभग 9 बजे, जहानाबाद की बिजली काट दी गई। चारों तरफ अंधेरा छा गया। इसके बाद पुलिस की वर्दी में करीब 1,000 सशस्त्र नक्सली शहर में दाखिल हुए। उनके पास बंदूकें, देसी बम और वायरलेस संचार उपकरण तक थे। वे पूरी तैयारी के साथ आए थे। हमला सुनियोजित और रणनीतिक था। शहर की सभी एंट्री और एग्ज़िट पॉइंट्स पर नक्सली तैनात हो गए। उन्होंने थाने, सरकारी इमारतों और जेल पर एकसाथ धावा बोल दिया।
नक्सलियों का मुख्य उद्देश्य था अपने कमांडर अजय कानू और अन्य माओवादी साथियों को जेल से छुड़ाना। वे जेल में घुसे, कैदियों को नाम से पुकार-पुकारकर बाहर निकाला और जिनकी जरूरत नहीं थी, उन्हें वहीं छोड़ दिया। इस दौरान उन्होंने रणवीर सेना के दो बड़े सदस्यों – बड़े शर्मा और बिसेस्वर राय – की मौके पर ही हत्या कर दी।
389 कैदी हुए फरार
इस हमले में 389 कैदी जेल से फरार हो गए। इनमें से ज्यादातर छोटे अपराधी थे, लेकिन कई खतरनाक नक्सली भी थे जो बाद में कई राज्यों में हिंसक गतिविधियों में शामिल पाए गए। यह भारत के इतिहास का सबसे बड़ा जेल ब्रेक कांड बन गया।
शहर में मचा हड़कंप
रातभर शहर में बमों की आवाज़ें गूंजती रहीं। कई स्थानों पर फायरिंग हुई। आम लोग डर के मारे अपने घरों में दुबक गए। कोई नहीं जानता था कि बाहर क्या हो रहा है। सुबह जब स्थिति थोड़ी सामान्य हुई, तो लोग जेल और थाने की ओर भागे यह देखने के लिए कि आखिर हुआ क्या है।
प्रशासन पर उठे सवाल
यह घटना प्रशासन की लापरवाही की पोल खोलने वाली थी। बिहार में उस समय राष्ट्रपति शासन लागू था और चुनाव प्रक्रिया चल रही थी। ऐसे में सुरक्षा व्यवस्था पहले से ही कमजोर थी। नक्सलियों ने इसी कमजोरी का फायदा उठाया।
हमले के बाद तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुनील कुमार को निलंबित कर दिया गया। राज्य और केंद्र सरकार ने मिलकर स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए अर्धसैनिक बलों की भारी तैनाती की।
न्यायिक कार्रवाई
इस हमले के बाद बिहार सरकार ने तेजी से न्यायिक प्रक्रिया शुरू की। 2007 से 2009 के बीच कुल 109 नक्सलियों को इस मामले में दोषी ठहराया गया और उन्हें सजा सुनाई गई। कुछ मामलों में मौत की सजा भी दी गई।
वहीं, इस दौरान सरकार ने रणवीर सेना के कई सदस्यों के खिलाफ भी कार्रवाई की, जिन पर दलित नरसंहारों के आरोप थे।
अजय कानू और राजनीति
जेल से फरार कराए गए मुख्य आरोपी अजय कानू बाद में लंबे समय तक पुलिस की पकड़ से बाहर रहा। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब 2024 में अजय कानू ने अपनी पत्नी शारदा देवी के लिए लोकसभा चुनाव में टिकट की मांग की। उन्होंने एक प्रमुख राजनीतिक दल से टिकट के लिए संपर्क भी किया।
यह एक बड़ा सवाल बन गया कि जो व्यक्ति राज्य के सबसे बड़े अपराध में शामिल रहा हो, क्या उसे राजनीति में जगह मिलनी चाहिए?
इस कांड के दूरगामी प्रभाव
जहानाबाद जेल ब्रेक कांड ने यह साफ कर दिया कि माओवादी संगठन न केवल संगठित और शक्तिशाली हैं, बल्कि वे प्रशासन की नब्ज को भी पहचानते हैं। उन्होंने यह हमला चुनावी माहौल में किया, जब सरकार और प्रशासन की प्राथमिकताएं दूसरी थीं।
इस हमले के बाद पूरे देश में जेलों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर नए दिशा-निर्देश बनाए गए। खासकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विशेष सुरक्षा व्यवस्था लागू की गई। राज्य सरकारों को यह निर्देश दिया गया कि जेलों में माओवादी कैदियों को रखने के लिए विशेष बैरकों और सुरक्षा मानकों को अपनाया जाए।
निष्कर्ष
जहानाबाद कांड सिर्फ एक जेल ब्रेक नहीं था, बल्कि यह एक चेतावनी थी। यह घटना बताती है कि जब एक विचारधारा हथियार उठा लेती है और सरकार की कमजोरियों को समझ जाती है, तो वह किसी भी हद तक जा सकती है। नक्सलियों ने यह साबित कर दिया कि वे किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं, बशर्ते उनके पास योजना, संसाधन और मौका हो।
यह घटना बिहार और पूरे देश के लिए एक सबक बनी – सुरक्षा में किसी भी प्रकार की चूक बहुत बड़ी कीमत मांग सकती है। चाहे वह कैदी हों, अधिकारी हों या आम जनता – हर कोई इसकी चपेट में आ सकता है।