five films of Anurag Kashyap : भारतीय सिनेमा में जब भी अलग और साहसी कहानी कहने वाले निर्देशकों की बात होती है, तो अनुराग कश्यप का नाम सबसे पहले लिया जाता है। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘ब्लैक फ्राइडे’, ‘देव डी’, और ‘रमन राघव 2.0’ जैसी फिल्मों से उन्होंने बॉलीवुड को नया नजरिया दिया है। लेकिन जहां एक ओर उन्हें उनके काम के लिए सराहा जाता है, वहीं दूसरी ओर उन्होंने कई ऐसी फिल्में भी बनाईं या प्लान कीं जो कभी परदे तक पहुंच ही नहीं सकीं।
हाल ही में एक इंटरव्यू में अनुराग कश्यप ने खुलकर बताया कि पैसे की कमी, सिस्टम की उदासीनता और मेनस्ट्रीम सोच के चलते उनकी कई अच्छी फिल्में अधूरी रह गईं या अटक गईं। उन्होंने कहा,
“हम अच्छी फिल्में बनाना चाहते हैं लेकिन आज के दौर में ऐसी फिल्मों को फंडिंग नहीं मिलती। प्लेटफॉर्म सिर्फ वही कंटेंट चाहते हैं जो ट्रेंडिंग हो।”
इस लेख में हम जानेंगे अनुराग कश्यप की उन 5 फिल्मों के बारे में जो कभी रिलीज नहीं हो पाईं या जिनका प्रोजेक्ट बीच में ही बंद हो गया, साथ ही समझेंगे क्यों ऐसे फिल्मकारों की राह इतनी कठिन होती है।
Table of Contents
🎬 1. पांच (Paanch) – एक बैन की गई शुरुआत
अनुराग कश्यप की डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म ‘पांच’ एक सच्ची घटना पर आधारित थी, जो 1990 के दशक की पुणे की ‘जोशी-अभ्यंकर हत्याकांड’ पर आधारित थी। इस फिल्म में के के मेनन, अधिति गोवित्रिकर और जॉय फर्नांडिस जैसे कलाकार थे।
फिल्म क्यों नहीं रिलीज़ हो पाई?
सेंसर बोर्ड ने फिल्म को अत्यधिक हिंसात्मक, ड्रग्स, गालियों और नैतिक रूप से आपत्तिजनक सामग्री के लिए पास करने से मना कर दिया। अनुराग ने फिल्म में कोई कट लगाने से इनकार कर दिया और यह फिल्म आज तक थिएटर में रिलीज नहीं हो पाई।
कश्यप का बयान:
“मेरे करियर की पहली फिल्म ही रोक दी गई थी। ये सीख थी कि मैं जो भी कहूं, उसका अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहूं।”
🎥 2. अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है (रीमेक)
1980 की मशहूर फिल्म ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ का रीमेक बनाने का सपना अनुराग कश्यप लंबे समय से देख रहे थे। इस फिल्म का रीमेक एक नए नजरिए से पेश किया जाना था, जिसमें समकालीन सामाजिक और राजनीतिक हालातों को उजागर किया जाना था।
क्या हुआ प्रोजेक्ट के साथ?
स्क्रिप्ट तैयार थी, कास्ट भी लगभग फाइनल थी, लेकिन कोई प्रोड्यूसर इसे फंड करने के लिए आगे नहीं आया। आखिरकार अनुराग ने इस प्रोजेक्ट को स्थगित कर दिया।
अनुराग का दर्द:
“लोगों को कंटेंट की बात करनी है लेकिन जब रियल कंटेंट सामने आता है, तो कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं होता।”
🎞️ 3. Gulaal का शुरुआती वर्जन
‘गुलाल’ को अनुराग कश्यप की सबसे राजनीतिक फिल्मों में से एक माना जाता है। यह फिल्म 2009 में रिलीज हुई थी लेकिन इसे बनाने में सात साल लग गए। दरअसल, गुलाल की शूटिंग 2001 में ही शुरू हो गई थी लेकिन फंड की कमी और डिस्ट्रीब्यूटर्स के समर्थन के अभाव में फिल्म अटकती रही।
क्यों अटक गई फिल्म?
फिल्म का राजनीतिक विषय और छात्रों की राजनीति पर खुलकर बात करना कई निवेशकों को असहज लगा। कई लोगों ने फिल्म को ‘बहुत गंभीर’ और ‘कमर्शियल अपील से दूर’ बताया।
अनुराग का अनुभव:
“जब तक किसी फिल्म में मसाला, गाना, ग्लैमर और स्टार नहीं होता, उसे कमर्शियल नहीं माना जाता।”
🎬 4. Allwyn Kalicharan – साइंस फिक्शन का सपना
साल 2003 के आसपास अनुराग कश्यप ने एक अनोखा साइंस-फिक्शन प्रोजेक्ट प्लान किया था जिसका नाम था Allwyn Kalicharan। इस फिल्म में विवेक ओबेरॉय को मुख्य भूमिका में कास्ट किया गया था और इसे 2050 के मुंबई में सेट किया गया था — एक ऐसा मुंबई जो अराजकता और भ्रष्टाचार से घिरा था।
क्या हुआ इस प्रोजेक्ट का?
फिल्म की शूटिंग शुरू होने वाली थी तभी प्रोड्यूसर के साथ क्रिएटिव मतभेद हो गए। इसके अलावा फिल्म का बजट भी काफी बड़ा था और अनुराग उस समय इंडस्ट्री में उतने स्थापित नहीं थे। यह प्रोजेक्ट बंद कर दिया गया।
अनुराग की पीड़ा:
“अगर Allwyn Kalicharan बन जाती तो वह मेरी सबसे अलग और विजुअली अद्भुत फिल्म होती।”
🎥 5. Bombay Velvet Trilogy
जब अनुराग ने ‘Bombay Velvet’ बनाई थी, तो उनका सपना था कि वह इसे एक ट्रिलॉजी बनाएंगे। रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा स्टारर यह फिल्म 2015 में आई थी और बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गई थी।
ट्रिलॉजी का क्या हुआ?
पहले भाग की विफलता के कारण प्रोड्यूसर्स ने बाकी दो भागों से हाथ खींच लिया। अनुराग का सपना अधूरा रह गया।
अनुराग का कहना था:
“मैंने जो सोचा था वो पूरा नहीं हुआ लेकिन कम से कम मैंने कोशिश की। मुझे अफसोस नहीं है, बस दुःख है कि मैं कहानी पूरी नहीं कह पाया।”
📢 अनुराग कश्यप का ताज़ा बयान
हाल ही में एक फिल्म फेस्टिवल में अनुराग कश्यप ने कहा:
“अब ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी वही कंटेंट बिकता है जो या तो थ्रिलर हो या सेक्स और हिंसा से भरा हो। अच्छी, संवेदनशील और अलग फिल्में अब भी हाशिए पर हैं।”
उन्होंने आगे कहा:
“हम अच्छी फिल्में बनाना चाहते हैं लेकिन हमें कोई मौका नहीं देता। इंडस्ट्री में एक तरह का चलन है, जो उससे बाहर जाता है, वो रिजेक्ट हो जाता है।”
🎯 निष्कर्ष: क्या अनुराग कश्यप जैसे निर्देशकों के लिए कोई जगह है?
अनुराग कश्यप जैसे फिल्मकार उन लोगों में से हैं जो सिनेमा को सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाने का माध्यम मानते हैं। वे नए विषयों को छूते हैं, जोखिम उठाते हैं और एक सच्ची आवाज बनकर सामने आते हैं।
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि मौजूदा सिस्टम में ऐसे सिनेमा की ज्यादा कद्र नहीं है। निवेशक ट्रेंड देखते हैं, दर्शक नाम और ग्लैमर, और सिस्टम उन्हीं चीजों को बढ़ावा देता है जो पहले से बिक रही हैं।
फिर भी अनुराग जैसे लोग हार नहीं मानते। वे आज भी नए प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं, नई आवाजों को मंच दे रहे हैं, और भारतीय सिनेमा को बदलने की लड़ाई लड़ रहे हैं।