H.S. Venkateshmurthy : कन्नड़ भाषा और साहित्य जगत के एक प्रमुख स्तंभ, प्रख्यात कवि, नाटककार, आलोचक और शिक्षाविद् एच.एस. वेंकटेशमूर्ति का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने 30 मई 2025 की सुबह बेंगलुरु के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन से कन्नड़ साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। वे न केवल एक लेखक थे, बल्कि एक संवेदनशील विचारक और कन्नड़ भाषा के सच्चे सेवक भी थे।
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प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
एच.एस. वेंकटेशमूर्ति का जन्म 23 जून 1944 को कर्नाटक के दावणगेरे जिले के चन्नागिरी तालुक के होदिगेरे नामक गाँव में हुआ था। बचपन से ही साहित्य और कविता में उनकी रुचि थी। उन्होंने बेंगलुरु विश्वविद्यालय से कन्नड़ साहित्य में एम.ए. किया और बाद में ‘कथन काव्य’ पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
अध्यापन और शैक्षणिक जीवन
वेंकटेशमूर्ति ने अपने करियर की शुरुआत एक अध्यापक के रूप में की। उन्होंने बेंगलुरु के सेंट जोसेफ कॉलेज में कन्नड़ भाषा पढ़ाई और कई दशकों तक अध्यापन किया। उनके पढ़ाए हुए हजारों छात्रों ने उन्हें एक प्रेरणादायक शिक्षक के रूप में याद किया है।
साहित्यिक योगदान
एच.एस. वेंकटेशमूर्ति का साहित्यिक योगदान बहुआयामी था। उन्होंने कविता, नाटक, उपन्यास, आलोचना, आत्मकथा और बच्चों के साहित्य में रचनाएँ कीं। उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियाँ इस प्रकार हैं:
- कविता संग्रह: परिवृत्त, बागिलु, सौगंधिका, मूवत्तु मलेगालु
- नाटक: अग्निवर्ण, चित्रपट, उरिय उय्याले
- उपन्यास: तापी, अग्निमुखी, कादिरानकोटे
- आत्मकथा: हत्तिरदा दैव
उनकी कविताएँ सामाजिक सरोकारों से जुड़ी होती थीं और आम आदमी की संवेदनाओं को उकेरती थीं। वे ‘भावगीत’ शैली के विशेषज्ञ माने जाते थे और उनकी कई कविताओं को सुगम संगीत के रूप में गाया गया।
फिल्म और टीवी में योगदान
एच.एस. वेंकटेशमूर्ति ने कन्नड़ फिल्मों और टेलीविजन में भी योगदान दिया। उन्होंने फिल्म चिन्नारी मुथा की कहानी और गीत लिखे थे। इसके अलावा, प्रसिद्ध फिल्म अमेरिका अमेरिका का गीत बानल्ली तेलो मोडा और किरिक पार्टी का गीत थूगु मंचदल्लि कूथु भी उन्होंने लिखा था।
टीवी धारावाहिक मुक्ता और महापर्व के टाइटल ट्रैक भी उनकी लेखनी का परिणाम थे।
पुरस्कार और सम्मान
उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान को कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें प्रमुख हैं:
- बाल साहित्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार (2013)
- वी.एम. इनामदार पुरस्कार
- कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार
- फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार (कन्नड़)
साथ ही, उन्हें कई बार कन्नड़ साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता का भी सम्मान मिला।
सामाजिक विचार और सक्रियता
एच.एस. वेंकटेशमूर्ति कन्नड़ भाषा के प्रति अत्यधिक संवेदनशील थे। वे मातृभाषा में शिक्षा के प्रबल पक्षधर थे और हिन्दी के वर्चस्व के विरुद्ध खुलकर बोलते थे। उनका मानना था कि संस्कृत और प्राकृत जैसी भाषाएँ राष्ट्रभाषा बनने के लिए अधिक उपयुक्त हैं।
वे यह भी मानते थे कि अंग्रेजी भाषा का ज्ञान आज के बच्चों के लिए आवश्यक है, लेकिन प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए ताकि जड़ों से जुड़ाव बना रहे।
निधन की खबर और अंतिम विदाई
एच.एस. वेंकटेशमूर्ति का निधन बेंगलुरु के बीजीएस अस्पताल में हुआ। उनके पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, वे पिछले कुछ महीनों से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। उनके परिवार में चार पुत्र हैं।
उनका अंतिम संस्कार उसी दिन बेंगलुरु में श्रद्धांजलि समारोह के साथ संपन्न हुआ। कर्नाटक के मुख्यमंत्री, साहित्यकार, कलाकार, और हजारों प्रशंसकों ने उन्हें अंतिम विदाई दी।
साहित्यजगत की प्रतिक्रिया
एच.एस. वेंकटेशमूर्ति के निधन पर साहित्यिक, शैक्षणिक और कला-जगत की तमाम हस्तियों ने गहरा दुख व्यक्त किया। कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर कहा, “एच.एस. वेंकटेशमूर्ति का जाना कन्नड़ साहित्य की अपूरणीय क्षति है। उनकी लेखनी कन्नड़ भाषा को नई ऊँचाइयाँ देती रही है।”
कवि-लेखक गिरीश कर्नाड ने कहा था कि “वेंकटेशमूर्ति की कविताओं में एक अद्भुत लय और भावनात्मक गहराई होती है, जो उन्हें समकालीन कवियों से अलग बनाती है।”
निष्कर्ष
एच.एस. वेंकटेशमूर्ति एक ऐसा नाम है जिसने अपने लेखन से न केवल कन्नड़ साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि लोगों की सोच को भी प्रभावित किया। उन्होंने जिस सादगी, गहराई और संवेदना से लिखा, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी।