Himanta Biswa Sarma attacks Congress: “Indira Gandhi did not handle the situation properly after the formation of Bangladesh” : असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी और विशेष रूप से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर तीखा हमला बोला है। उनका कहना है कि 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी के बाद भारत के पास एक ऐतिहासिक अवसर था, लेकिन इंदिरा गांधी की सरकार ने उस स्थिति को सही ढंग से नहीं संभाला। उन्होंने कहा कि भारत की सैन्य जीत के बावजूद राजनीतिक नेतृत्व रणनीतिक, सामाजिक और भू-राजनीतिक लाभ प्राप्त करने में पूरी तरह असफल रहा।
यह बयान एक सार्वजनिक सभा में दिया गया, जहां उन्होंने स्पष्ट किया कि 1971 में पाकिस्तान पर भारत की विजय केवल युद्ध जीतना नहीं था, बल्कि यह एक दीर्घकालिक कूटनीतिक सफलता में बदल सकती थी — जो नहीं हो सकी।
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हिमंत बिस्वा सरमा के मुख्य आरोप
मुख्यमंत्री ने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कांग्रेस की नीतियों की आलोचना की। उन्होंने बताया कि कैसे 1971 के बाद की गई भूलों का असर आज तक देश विशेषकर पूर्वोत्तर राज्यों पर पड़ा है।
1. बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता का अंत
हिमंत सरमा ने कहा कि जब भारत ने बांग्लादेश की स्थापना में मदद की थी, तब यह एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र था। भारत ने एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की कल्पना की थी जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करेगा। लेकिन कुछ ही वर्षों में बांग्लादेश ने खुद को एक इस्लामी राष्ट्र घोषित कर लिया। भारत की तरफ से इस बदलाव का विरोध नहीं किया गया, जिससे स्पष्ट होता है कि इंदिरा गांधी सरकार इस मोर्चे पर विफल रही।
2. हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति बदतर हुई
उन्होंने कहा कि 1971 में बांग्लादेश की जनसंख्या में हिंदुओं की हिस्सेदारी लगभग 20 प्रतिशत थी, लेकिन अब यह घटकर 8 प्रतिशत से भी कम रह गई है। यह इस बात का संकेत है कि वहां के हिंदुओं के साथ भेदभाव हुआ, अत्याचार हुए और उन्हें अपने ही देश से पलायन करने के लिए मजबूर किया गया। भारत ने इस विषय पर गंभीरता नहीं दिखाई और न ही कोई दीर्घकालिक रणनीति अपनाई।
3. सिलीगुड़ी कॉरिडोर की उपेक्षा
हिमंत बिस्वा सरमा ने यह भी कहा कि भारत ने 1971 में एक सुनहरा मौका गंवा दिया जब वह बांग्लादेश के साथ सीमाएं तय कर रहा था। सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे ‘चिकन नेक’ कहा जाता है, भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को मुख्य भूमि से जोड़ता है और यह बेहद संवेदनशील भौगोलिक क्षेत्र है। उन्होंने कहा कि भारत इस क्षेत्र की सुरक्षा मजबूत करने में असफल रहा और आज भी यह क्षेत्र चीन और बांग्लादेश की नजर में है।
4. अवैध घुसपैठ पर चुप्पी
मुख्यमंत्री ने कहा कि इंदिरा गांधी सरकार ने 1971 के बाद बांग्लादेशी घुसपैठ पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। न ही कोई ऐसा समझौता किया गया जिससे यह तय हो सके कि युद्ध के बाद भारत आए शरणार्थियों को वापस भेजा जाएगा। नतीजतन असम और बंगाल में जनसंख्या का संतुलन बिगड़ गया। सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अस्थिरता पैदा हुई, जो आज भी बनी हुई है।
5. चटगांव बंदरगाह तक रणनीतिक पहुंच की चूक
सरमा का कहना था कि भारत को चटगांव बंदरगाह तक एक स्थायी और सुगम रास्ता सुनिश्चित कर लेना चाहिए था। पूर्वोत्तर भारत आज भी भूमि से घिरा हुआ क्षेत्र है और परिवहन की सुविधा सीमित है। अगर उस समय भारत ने रणनीतिक रूप से चटगांव तक पहुंच बना ली होती, तो न केवल व्यापार बढ़ता, बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों का विकास भी तेज़ी से होता।
6. भारत विरोधी उग्रवादियों को शरण
उन्होंने आरोप लगाया कि बांग्लादेश ने दशकों तक भारत विरोधी उग्रवादियों को शरण दी, जिससे असम और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में उग्रवाद और हिंसा को बढ़ावा मिला। अगर भारत ने 1971 में अपनी कूटनीतिक स्थिति का उपयोग कर बांग्लादेश से एक स्पष्ट समझौता कर लिया होता, तो यह स्थिति टल सकती थी।
“इतिहास में सबसे बड़ा कूटनीतिक अवसर गंवा दिया”
हिमंत सरमा ने कहा कि 1971 की जीत केवल सैन्य सफलता नहीं थी, बल्कि भारत के पास यह मौका था कि वह पूरे दक्षिण एशिया में एक नई राजनीतिक संरचना स्थापित करता, जहां भारत की भूमिका एक मजबूत संरक्षक और मार्गदर्शक की होती। लेकिन इंदिरा गांधी की एकतरफा उदारता के कारण भारत को उसका वास्तविक लाभ नहीं मिला।
उन्होंने कहा:
“बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद भारत को रणनीतिक बढ़त मिलनी चाहिए थी, लेकिन कांग्रेस सरकार की चुप्पी और लापरवाही ने सब खो दिया। यह एक ऐतिहासिक चूक थी।”
भविष्य की चेतावनी
मुख्यमंत्री सरमा ने कहा कि भारत को अब भी अपने पूर्वोत्तर की सुरक्षा और सामाजिक संतुलन पर ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं, लेकिन अतीत की गलतियों को सुधारने में समय लगेगा।
उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे इतिहास को पढ़ें, समझें और यह जानें कि कैसे राजनीतिक फैसले आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की सुरक्षा केवल सेना से नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और दूरदर्शिता से भी होती है।
निष्कर्ष
हिमंत बिस्वा सरमा का यह बयान एक बार फिर कांग्रेस बनाम भाजपा के राजनीतिक विमर्श को गर्मा रहा है। जहां कांग्रेस इसे इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने की कोशिश मान सकती है, वहीं भाजपा इसे राष्ट्रहित में जरूरी आत्ममंथन बता रही है। लेकिन यह बात निश्चित है कि 1971 के बाद भारत द्वारा उठाए गए—or न उठाए गए—कदमों का असर आज भी महसूस किया जा रहा है।