Jaideep Ahlawat : जयदीप अहलावत—यह नाम आज हिंदी सिनेमा और ओटीटी की दुनिया में दमदार अभिनय का पर्याय बन चुका है। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘पाताल लोक’ और ‘जाने जां’ जैसे प्रोजेक्ट्स में अपनी अदाकारी से दर्शकों के दिलों में जगह बना चुके जयदीप हाल ही में ‘अमर उजाला संवाद’ के मंच पर पहुंचे, जहां उन्होंने न केवल अपने फिल्मी सफर के बारे में बताया, बल्कि अपनी निजी जिंदगी और संघर्षों की भी दिल छू लेने वाली कहानी साझा की।
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बचपन की यादें और पारिवारिक रिश्ता
हरियाणा के रोहतक जिले के खरखड़ा गांव से ताल्लुक रखने वाले जयदीप अहलावत ने बताया कि उनका बचपन बहुत साधारण था। वे एक संयुक्त परिवार में पले-बढ़े जहां पारंपरिक मूल्य और अनुशासन का पालन किया जाता था। जयदीप कहते हैं—
“जब मैं कॉलेज से घर लौटता था तो सबसे पहले अपने पापा के गले लगकर रोता था। पता नहीं क्यों, लेकिन हर बार ऐसा ही होता था। वो मेरे सबसे बड़े संबल थे।”
उनके इस बयान ने कार्यक्रम में मौजूद हर किसी की आंखें नम कर दीं। उन्होंने बताया कि उनके पिता ने हमेशा उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी, लेकिन साथ ही ज़मीन से जुड़े रहने की सीख भी दी।
अभिनेता बनने का सपना
जयदीप का सपना शुरू से ही अभिनेता बनने का नहीं था। पहले वे सेना में जाना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने कई बार प्रयास भी किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने एक्टिंग की ओर रुख किया। उन्होंने एफटीआईआई पुणे से अभिनय का प्रशिक्षण लिया और यहीं से उनके करियर की नींव पड़ी।
“मैंने बैरियर तोड़ा। मेरे परिवार में कोई भी फिल्म इंडस्ट्री से नहीं था, लेकिन मैंने ठान लिया था कि मुझे कुछ अलग करना है। यही जुनून मुझे मुंबई तक ले गया।”
शुरुआती संघर्ष
मुंबई आने के बाद जयदीप का संघर्ष आसान नहीं था। लंबे समय तक छोटे-छोटे रोल किए, लेकिन उन्हें उनकी प्रतिभा के अनुसार पहचान नहीं मिल रही थी। कई बार निराशा भी हुई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने बताया कि वे एक वक्त में इतने टूट चुके थे कि वापिस हरियाणा लौटने का मन बना चुके थे, लेकिन फिर किसी ने उन्हें कहा, “तुम्हें हार मानने का हक नहीं है।” और यही वाक्य उनकी ताकत बन गया।
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से पहचान
अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जयदीप अहलावत के करियर का टर्निंग पॉइंट बनी। इसमें उनके निभाए किरदार ‘शरीफ कादरी’ को खूब सराहा गया। इसके बाद तो उन्होंने ‘रईस’, ‘राज़ी’, ‘कमांडो’ जैसी फिल्मों में भी अहम भूमिकाएं निभाईं।
लेकिन उन्हें असली पहचान मिली अमेज़न प्राइम की वेब सीरीज ‘पाताल लोक’ से, जिसमें उन्होंने पुलिस अफसर ‘हाथीराम चौधरी’ का किरदार निभाया। यह किरदार न केवल समीक्षकों को पसंद आया, बल्कि आम दर्शकों के बीच भी वायरल हो गया।
अमर उजाला संवाद में कही दिल छूने वाली बातें
कार्यक्रम के दौरान जयदीप ने दर्शकों से अपने दिल की बातें साझा कीं। उन्होंने कहा—
“मुझे आज भी याद है जब मां मुझे फोन करके कहती थीं कि बेटा खाना खा लिया क्या? और मैं उस वक्त किसी प्रोडक्शन हाउस के बाहर काम की तलाश में खड़ा होता था। वो दिन मुझे आज भी याद हैं। लेकिन उन दिनों ने ही मुझे मजबूत बनाया।”
उन्होंने यह भी कहा कि एक कलाकार के लिए सबसे बड़ी पूंजी उसकी ईमानदारी होती है। अभिनय एक सेवा है, जिसमें आप दर्शकों की भावनाओं को छूते हैं। अगर आप झूठे हैं तो दर्शक तुरंत पहचान लेते हैं।
पिता के साथ रिश्ते को किया याद
जयदीप ने अपने पिता के साथ अपने रिश्ते को याद करते हुए कहा—
“मेरे पापा ने कभी मुझसे ये नहीं कहा कि मुझे अभिनेता बनना चाहिए, लेकिन उन्होंने कभी रोका भी नहीं। जब उन्होंने मुझे एफटीआईआई में दाखिला लेते देखा, तब उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई और बस इतना कहा—’अब पीछे मत देखना’।”
पिता के निधन के बाद जयदीप ने पहली बार कैमरे के सामने आकर कहा था कि उन्होंने अपने पिता के सपनों को अपनी आंखों में उतार लिया है। आज वे जो कुछ भी हैं, उसमें उनके पापा की प्रेरणा शामिल है।
अभिनय की परिभाषा
जयदीप अहलावत मानते हैं कि अभिनय केवल संवाद बोलने का माध्यम नहीं, बल्कि संवेदनाओं को जीने की कला है। उनका मानना है कि हर किरदार को निभाते वक्त एक कलाकार को उस इंसान की जिंदगी जीनी पड़ती है।
“जब मैं ‘पाताल लोक’ में हाथीराम बना, तो मैंने हफ्तों तक उसी अंदाज़ में सोचना, चलना और बोलना शुरू कर दिया था। तभी जाकर वो किरदार लोगों के दिलों तक पहुंचा।”
युवाओं के लिए संदेश
कार्यक्रम के अंत में जयदीप ने युवाओं के लिए एक खास संदेश दिया। उन्होंने कहा कि अगर कोई सपना देखो, तो उसे पूरा करने की जिद रखो। रास्ते में रुकावटें जरूर आएंगी, लेकिन अगर इरादा साफ हो तो मंज़िल जरूर मिलेगी।
“मुश्किलें सबके जीवन में होती हैं, लेकिन जो उनसे लड़ते हैं वही कुछ बनते हैं। अगर मैं एक गांव से निकलकर यहां तक पहुंच सकता हूं, तो कोई भी पहुंच सकता है।”
निष्कर्ष
जयदीप अहलावत की कहानी संघर्ष, जुनून और सच्चाई की कहानी है। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि अगर मन में कुछ कर गुजरने की ठान ली जाए, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। उनके शब्द, उनका अनुभव और उनका अभिनय—तीनों मिलकर उन्हें न सिर्फ एक उम्दा अभिनेता बनाते हैं, बल्कि एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व भी।