Modi government will conduct caste based census: Historic decision in cabinet meeting, process will be done along with main census : भारत में जाति आधारित जनगणना लंबे समय से एक संवेदनशील और बहुप्रतीक्षित मुद्दा रहा है। कई सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों की वर्षों से चली आ रही मांग के बाद अब केंद्र सरकार ने इस दिशा में बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई हालिया कैबिनेट बैठक में यह निर्णय लिया गया कि जाति जनगणना (Caste Census) को देशव्यापी जनगणना के साथ ही कराया जाएगा।
इस फैसले को भारतीय सामाजिक न्याय व्यवस्था और नीति-निर्माण में एक नई दिशा के रूप में देखा जा रहा है। इस लेख में हम आपको विस्तार से बताएंगे कि यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है, इसका सामाजिक और राजनीतिक असर क्या हो सकता है और सरकार की रणनीति क्या है।
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जाति जनगणना क्या है और इसकी ज़रूरत क्यों है?
जाति जनगणना का सीधा अर्थ है — भारत की संपूर्ण आबादी में विभिन्न जातियों की संख्या, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति और सरकारी योजनाओं से उनका लाभ उठाने की स्थिति को दर्ज करना।
आखिरी बार भारत में जाति आधारित गणना 1931 में हुई थी, और तभी से यह आंकड़े स्थिर हैं। हालांकि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना होती रही है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और सामान्य वर्ग की उपजातियों का आंकड़ा कहीं नहीं है।
इसकी ज़रूरत क्यों है?
- सरकार की योजनाओं का लाभ वास्तविक जरूरतमंद तक पहुंचे।
- आरक्षण नीति को सटीक और तर्कसंगत बनाया जा सके।
- सामाजिक असमानताओं को पहचानकर सुधार किया जा सके।
- डेटा के आधार पर नीतियां बनाई जा सकें।
मोदी सरकार का ऐलान: जाति जनगणना को मिली कैबिनेट से मंज़ूरी
हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में यह फैसला लिया गया कि अगली जनगणना प्रक्रिया के दौरान जाति आधारित आंकड़े भी एकत्र किए जाएंगे। यह पूरी प्रक्रिया डिजिटल फॉर्मेट में होगी, ताकि जानकारी पारदर्शी और सुरक्षित रहे।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह कार्य भारतीय जनगणना अधिनियम 1948 के दायरे में रहकर किया जाएगा। इसके तहत:
- सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक समान प्रक्रिया लागू होगी।
- OBC, EWS, SC, ST और अन्य सामाजिक वर्गों का विवरण दर्ज होगा।
- सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा, आवास, रोजगार आदि की भी जानकारी ली जाएगी।
राजनीतिक और सामाजिक महत्व: कौन हैं इसके पक्ष और विपक्ष में?
जाति जनगणना एक ऐसा विषय है जो वर्षों से राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का हिस्सा रहा है।
पक्ष में कौन हैं:
- ओबीसी समुदाय और उनके प्रतिनिधित्व करने वाले दल, जैसे JDU, RJD, SP, DMK आदि, लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे।
- सामाजिक न्याय के पक्षधर संगठनों का मानना है कि “जिनकी गिनती नहीं, उनकी हिस्सेदारी नहीं।”
विपक्ष की दलीलें:
- इससे समाज में विभाजन और वर्ग संघर्ष बढ़ सकता है।
- जातीय पहचान को बढ़ावा मिलेगा, जिससे राजनीति और भी ज्यादा जातिवादी हो सकती है।
हालांकि अब जब खुद केंद्र सरकार ने यह पहल की है, तो इससे लगता है कि सरकार इसे सामाजिक संतुलन और नीति सुधार के रूप में देख रही है।
जनगणना की प्रक्रिया कैसे होगी? जानिए पूरी रणनीति
मोदी सरकार ने घोषणा की है कि जाति जनगणना को मुख्य जनगणना प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाएगा, जो अगले कुछ महीनों में शुरू हो सकती है।
जनगणना प्रक्रिया के मुख्य चरण होंगे:
- हाउस लिस्टिंग ऑपरेशन – मकानों की गिनती और विवरण।
- जनगणना संचालन – परिवार के प्रत्येक सदस्य की जानकारी।
- जाति का विवरण – परिवार की जाति, उपजाति और सामाजिक-आर्थिक स्थिति।
- डिजिटल एंट्री – डेटा को डिजिटल फॉर्म में संग्रहित किया जाएगा।
सरकार का दावा है कि डेटा संग्रहण के लिए मोबाइल ऐप और आईटी प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जाएगा, जिससे प्रक्रिया तेज़, पारदर्शी और सुरक्षित होगी।
इस फैसले के संभावित प्रभाव
- नीति निर्माण में पारदर्शिता: वास्तविक आंकड़ों के आधार पर योजनाएं बनाई जा सकेंगी।
- सटीक आरक्षण प्रणाली: जो जातियां अभी तक आरक्षण से वंचित थीं, उनके आंकड़े सामने आएंगे।
- राजनीतिक संतुलन में बदलाव: जाति डेटा से पार्टियों की रणनीतियाँ प्रभावित होंगी।
- सामाजिक न्याय को मजबूती: पिछड़े वर्गों को उनका अधिकार सुनिश्चित करना आसान होगा।
जाति जनगणना को लेकर पिछला विवाद
पिछले कुछ वर्षों में कई राज्य सरकारों ने अपनी ओर से जाति सर्वेक्षण कराए हैं। बिहार सरकार ने हाल ही में एक विस्तृत जातिगत सर्वेक्षण किया, जिसे लेकर केंद्र सरकार से टकराव भी हुआ था।
अब जब केंद्र सरकार खुद यह कदम उठा रही है, तो इससे राज्यों और केंद्र के बीच संविधानिक सामंजस्य की संभावना भी मजबूत हो सकती है।
भविष्य की दिशा: क्या आएंगे बड़े बदलाव?
जाति जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद यह तय माना जा रहा है कि इससे:
- शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार नीतियों में बदलाव होगा।
- OBC आरक्षण को आर्थिक स्थिति से जोड़ने की प्रक्रिया तेज़ हो सकती है।
- नए राजनीतिक समीकरण बन सकते हैं, खासकर चुनावों से पहले।
सरकार ने यह भी कहा है कि जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक किए जाएंगे, ताकि हर वर्ग को अपने समाज की स्थिति का पता चल सके।
निष्कर्ष: सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम
जाति जनगणना की मंजूरी केवल एक सांख्यिकीय प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक न्याय को और सशक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक निर्णय है। इससे भविष्य की योजनाएं, नीतियां और आरक्षण प्रणाली ज्यादा डेटा-आधारित और निष्पक्ष बन सकेंगी।