Sitare Zameen Par : बॉलीवुड में प्रेरणादायक फिल्मों की एक लंबी सूची है, लेकिन जब बात दिल को छू लेने वाली और समाज को आईना दिखाने वाली फिल्मों की होती है, तो ‘तारे ज़मीन पर’ का नाम सबसे पहले आता है। आमिर खान द्वारा निर्देशित और दर्शील सफारी अभिनीत यह फिल्म न केवल एक सिनेमाई उपलब्धि थी, बल्कि एक सामाजिक क्रांति भी साबित हुई थी।
अब इसी भावनात्मक धारा को आगे बढ़ाते हुए जल्द ही एक और फिल्म ‘सितारे ज़मीन पर’ बड़े पर्दे पर दस्तक देने जा रही है। खास बात यह है कि इस फिल्म के निर्देशक अभय वर्मा जब ‘तारे ज़मीन पर’ रिलीज़ हुई थी, तब कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। वे उस फिल्म से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ठान लिया कि एक दिन वे भी एक ऐसी ही कहानी दुनिया को दिखाएंगे। और अब, वर्षों बाद उनका सपना ‘सितारे ज़मीन पर’ के रूप में हकीकत बन रहा है।
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🎬 ‘तारे ज़मीन पर’ से मिली प्रेरणा
2007 में जब ‘तारे ज़मीन पर’ रिलीज़ हुई, तब अभय वर्मा एक साधारण कॉलेज छात्र थे। वे फिल्म मेकिंग या अभिनय की दुनिया से दूर थे, लेकिन रचनात्मकता और संवेदनशीलता से भरपूर थे। उन्होंने उस वक्त कहा था, “मैंने जब पहली बार वो फिल्म देखी, तो मेरी आंखों से आंसू रुक नहीं रहे थे। मैंने तभी तय कर लिया था कि मैं भी एक दिन कुछ ऐसा बनाऊंगा, जो लोगों के दिलों को छुए।”
उनके लिए ‘तारे ज़मीन पर’ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक आत्मबोध था। उन्होंने समझा कि सिनेमा केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि बदलाव का जरिया भी हो सकता है।
🎞️ ‘सितारे ज़मीन पर’ की कहानी
‘सितारे ज़मीन पर’ भी एक भावनात्मक कहानी है, लेकिन इसका विषय कुछ अलग है। यह फिल्म उन बच्चों की कहानी है, जो विशेष आवश्यकताओं के साथ जन्म लेते हैं — जैसे ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम, या बौद्धिक अक्षमता। फिल्म यह दिखाती है कि कैसे एक सकारात्मक माहौल, सच्चा मार्गदर्शन और समाज का सहयोग इन बच्चों को भी सितारा बना सकता है।
फिल्म का मुख्य किरदार ‘अर्जुन’ नाम का एक लड़का है, जो बोल नहीं सकता लेकिन उसकी चित्रकारी अद्भुत है। स्कूल में सब उसे कमजोर मानते हैं, लेकिन उसकी कला उसे लोगों की नज़रों में लाती है। अर्जुन की यात्रा हमें यह सिखाती है कि हर बच्चे के अंदर एक खास प्रतिभा होती है, बस उसे समझने और संवारने की ज़रूरत होती है।
🎥 अभय वर्मा का निर्देशन सफर
अभय वर्मा ने कॉलेज खत्म करने के बाद मुंबई की ओर रुख किया और बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर कई प्रोजेक्ट्स में काम किया। उन्होंने विज्ञापन फिल्में, म्यूज़िक वीडियो और डॉक्यूमेंट्रीज़ में भी हाथ आजमाया। लेकिन उनका सपना हमेशा एक ऐसी फिल्म बनाने का था जो सामाजिक संदेश के साथ हो।
उन्होंने कई सालों तक इस स्क्रिप्ट पर काम किया। कई बार प्रोड्यूसर नहीं मिले, कई बार बजट का संकट आया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अंततः एक इंडिपेंडेंट प्रोडक्शन हाउस ‘सतरंगी पिक्चर्स’ ने इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी। आज अभय वर्मा इस बात पर गर्व करते हैं कि उन्होंने जो सपना कॉलेज में देखा था, उसे सच कर दिखाया।
🌟 मुख्य कलाकार
फिल्म में अर्जुन की भूमिका निभा रहे हैं बाल कलाकार ऋत्विक शर्मा, जिन्होंने पहले कुछ टीवी शो में अभिनय किया है। ऋत्विक के अभिनय को देखकर खुद आमिर खान ने ट्वीट करके उनकी तारीफ की है। फिल्म में उनकी मां का किरदार निभा रही हैं शेफाली शाह, जिनकी भावनात्मक गहराई और मातृत्व की अभिव्यक्ति फिल्म में जान फूंक देती है।
इसके अलावा फिल्म में एक स्पेशल एजुकेटर की भूमिका में नजर आएंगे मनोज बाजपेयी, जिनका किरदार दर्शकों को ‘राम शंकर निकुंभ’ की याद दिला सकता है, लेकिन यह भूमिका एक अलग दृष्टिकोण से गढ़ी गई है।
🎶 संगीत और भावनाएं
फिल्म के संगीत निर्देशक हैं अमित त्रिवेदी, जिन्होंने हर बार की तरह इस बार भी गानों में संवेदनाओं की गहराई ला दी है। फिल्म में एक गाना है — “मैं भी आसमां छू सकता हूं”, जिसे सुनकर आंखें नम हो जाती हैं और दिल उम्मीद से भर उठता है।
गीतकार स्वानंद किरकिरे ने शब्दों में जादू बुनते हुए हर उस बच्चे की आवाज़ बनने की कोशिश की है जो समाज की नजर में “अलग” हैं।
🗣️ निर्देशक की सोच
अभय वर्मा कहते हैं:
“हमारी फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं है, यह एक सामाजिक अभियान है। हम चाहते हैं कि लोग इन बच्चों को बोझ न समझें, बल्कि उन्हें मौका दें अपने हुनर को दुनिया के सामने लाने का।”
उन्होंने यह भी बताया कि फिल्म की शूटिंग के दौरान उन्होंने कई विशेष बच्चों के साथ समय बिताया ताकि कहानी और किरदार प्रामाणिक बन सकें। उनकी यही सच्चाई फिल्म में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
📅 फिल्म की रिलीज़ और चर्चा
‘सितारे ज़मीन पर’ अक्टूबर 2025 में रिलीज़ होने जा रही है और इसे लेकर दर्शकों में उत्सुकता बढ़ रही है। फिल्म को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाया जाएगा, जहां इसके संवेदनशील विषय और प्रभावशाली निर्देशन की सराहना की जा रही है।
फिल्म के ट्रेलर ने पहले ही सोशल मीडिया पर लाखों व्यूज़ बटोर लिए हैं और #SitareZameenPar ट्रेंड कर रहा है। कई शिक्षकों, मनोवैज्ञानिकों और अभिभावकों ने इस फिल्म को बच्चों की समझ और व्यवहार को बदलने वाला कदम बताया है।
🔚 निष्कर्ष
‘सितारे ज़मीन पर’ केवल एक फिल्म नहीं है, यह एक सोच है — एक बदलाव की शुरुआत। यह फिल्म हमें सिखाती है कि बच्चे केवल मार्कशीट में नंबर नहीं होते, बल्कि वो सपने होते हैं जिन्हें सहेजने की ज़रूरत होती है।
अभय वर्मा ने जो प्रेरणा 2007 में ‘तारे ज़मीन पर’ से ली थी, वह अब 2025 में ‘सितारे ज़मीन पर’ के माध्यम से समाज के सामने आ रही है। यह कहानी हर उस माता-पिता, शिक्षक और छात्र को समर्पित है जो “अलग” होने से डरते हैं।